Monday, December 23, 2024
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हरिपुरा एवं त्रिपुरी संकट क्या है?( What is Haripura and Tripuri crisis?)

 

हरिपुरा अधिवेशन

हरिपुरा अधिवेशन 1939 में  गाँधी जी और सुभाष चंद्र बोस  जी के मध्य हमें अनबन देखने को मिलती है, वर्ष  1938 तक  नेहरू और सुभास चंद्र बोस कांग्रेस के दमदार प्रवक्ताओं मे से एक थे।  इसी  समय कांग्रेस विचारधारा को लेकर दो गुटों में अलग हो चुकी थी। एक नरमपंती और दूसरा गरम पंथी का दो विचार आया था।  गांधीजी जो राजनीती में अहम् भूमिका निभा रहे थे वह अब सक्रिय राजनीति से बहार जा चुके थे और वे अब हरिजनों के उत्थान की ओर ज्यादा कार्य कर रहे थे। जिसके कारण उनके द्वारा हरिजन संस्था का विकाश हुआ।

यहाँ कांग्रेस के दो अलग -अलग विचारधारा जो हिंसा और अहिंसा के बीच, समाजवादी विचारधारा के विकास को लेकर कांग्रेस मंत्रिमण्डलों के विरुद्ध दबे हुए गुस्से के बिच, जो स्वतंत्रता  के प्रति  प्रगति को लेकर धीमे पड़ गए थे, विचारधाराओं के बिच के संघर्ष को , कांग्रेस 19 – 21 फ़रवरी, 1938 में विट्ठल नगर, हरिपुरा में मिली।

हरिपुरा अधिवेशन 1939 में महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच महत्वपूर्ण मतभेद उभरे। यह अधिवेशन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का था, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को दूसरी बार कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था।

 

 

सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच मतभेदों के मुख्य कारण थे:

  1. रणनीति और दृष्टिकोण: सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशक्त और आक्रामक नीतियों की जरूरत है, जबकि महात्मा गांधी अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति पर जोर देते थे।
  2. द्वितीय विश्व युद्ध: बोस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार का विरोध करने और युद्ध का लाभ उठाने की वकालत की, जबकि गांधीजी का मानना था कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक और अहिंसक बने रहना चाहिए।
  3. संगठनात्मक मतभेद: सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस संगठन में तेजी से सुधार और परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया, जबकि गांधीजी ने कांग्रेस संगठन में स्थिरता और पुराने नेतृत्व के अनुभव को महत्व दिया।

हरिपुरा अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस को बहुमत से कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया, लेकिन गांधीजी और उनके समर्थकों ने बोस की नीतियों और नेतृत्व के प्रति असहमति जताई। अंततः, सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस से अलग होकर फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया।

इन मतभेदों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विभाजन की स्थिति पैदा की, लेकिन दोनों नेताओं ने अपने-अपने तरीकों से स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

 

A historical scene set in 1939 at the Haripura Congress Session, depicting Mahatma Gandhi and Subhas Chandra Bose in the foreground. Gandhi, in his traditional attire of a simple white dhoti and shawl, is engaged in a conversation with Subhas Chandra Bose, who is dressed in his iconic military-style uniform. The background features a large gathering of people, some sitting and some standing, with a large banner displaying 'Haripura 1939'. The setting is outdoors with a stage and a podium, with the Indian national flag prominently displayed. The atmosphere is tense yet respectful, capturing the significant moment in Indian history.

सुभास चंद्र बोस का प्रस्ताव

उनके अंतर्गत एक प्रस्ताव पारित गया जिसमें  ब्रिटेन को भारत को स्वतंत्र करने हेतु छह माह समय दिया जाना चाहिए अथवा और जिसके विफल होने के बाद इनके विरुद्ध विद्रोह करने को कहा गया,  जिससे महात्मा गाँधी असहमत थे क्योंकि इसके नियम और सरत गाँधी जी को कही से भी उचित नहीं लगा क्योंकि गाँधी जी शुरुआत से ही अहिंसा और सत्याग्रह में विश्वास रखते थे। वही सुभास चंद्र बोस इनके इन विचार को स्वीकार नहीं करते थे और यह सबसे महत्वपूर्ण कारण रहा इनदोनों के मध्य अनबन होने का. जिसके परिणामस्वरूप गाँधी और सुभास चंद्र बोस के  मध्य यह मनमोटाव तब ज्यादा बड़ा हो गया जब सुभास चंद्र बोस ने राष्ट्रिय नियोजन समिति का गठन किया. इसका उदेश्य औधोगिकरण पर आधारित भारत के अर्थित विकास के लिए एक बड़ी योजना का निर्माण करना था।और  यह गांधीजी की चरखा निति के विरुद्ध था।

हरिपुरा अधिवेशन के बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच की दरार और गहरी हो गई। बोस के इस्तीफे के बाद, दोनों नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपनी-अपनी राह चुनी।

 

सुभाष चंद्र बोस का आगे का मार्ग

सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर “फॉरवर्ड ब्लॉक” की स्थापना की। उनका उद्देश्य था सभी वामपंथी और समाजवादी तत्वों को एकजुट करना। उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने की भी कोशिश की। बोस ने जर्मनी और जापान से समर्थन प्राप्त किया और आज़ाद हिंद फौज (INA) का गठन किया। उनका नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” बहुत लोकप्रिय हुआ और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा प्रदान की।

 

महात्मा गांधी का नेतृत्व

दूसरी ओर, महात्मा गांधी ने अपने अहिंसक संघर्ष को जारी रखा। वे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान “करो या मरो” का नारा देते हुए भारत छोड़ो आंदोलन (1942) का नेतृत्व किया। गांधीजी का मानना था कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध ही सबसे सही रास्ता है।

 

मतभेद और उनकी विरासत

गांधीजी और बोस के बीच के मतभेद स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति और दृष्टिकोण पर आधारित थे। हालांकि उनके विचार और रास्ते अलग थे, लेकिन दोनों का उद्देश्य एक ही था – भारत की स्वतंत्रता।

  1. बोस की सक्रियता और साहसिकता: सुभाष चंद्र बोस की सैन्य रणनीति और विदेशी सहयोग प्राप्त करने की उनकी कोशिशों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम दिया। उनके योगदान को आज भी बहुत सम्मान के साथ देखा जाता है।
  2. गांधीजी का नैतिक और अहिंसक दृष्टिकोण: महात्मा गांधी का अहिंसा और सत्याग्रह का मार्ग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आधार बना। उनके नैतिक नेतृत्व ने लाखों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

 

निष्कर्ष

महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच के मतभेद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय हैं। दोनों नेताओं ने अपने-अपने तरीकों से स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। आज़ादी के बाद भी, दोनों की विरासत और उनके विचार भारतीय समाज और राजनीति को प्रभावित करते हैं।

 

वर्ष 1939 त्रिपुरी, जबलपुर (म. प्र.) अधिवेशन में वे गांधीजी द्वारा समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को पराजित क्र कांग्रेस के दूसरी बार अध्यक्ष बने, परन्तु कारकारिणी के गठन के प्रश्न पर गांधीजी से मतभेद के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया, जिसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद कोंग्रस के अध्यक्ष बने।

 

वर्ष 1939 में त्रिपुरी संकट के बाद कांग्रेस की अध्यक्षता से त्यागपत्र के पश्चात सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक ‘  स्थापना की।  यह संगठन वामपंथी विचारधारा पर आधारित था।  जब द्वितीय विश्व युद्ध के बादल यूरोप में मंडरा रहे थे, तब सुभास चंद्र बोस ने समय का लाभ उठाना चाहा और ब्रिटेन तथा जर्मनी के युद्ध का लाभ उठाकर एक उठाना चाहा और ब्रिटेन तथा जर्मनी के युद्ध का लाभ उठाकर एक प्रहार करके भारत की सवाधीनता चाही। उनका विश्वास आयरलैंड की। इस पुराणी कहावत पर था, इंग्लैंड की आवश्यकता आयरलैंड के लिए अवसर है। अंतः उन्होंने  कांग्रेसी नेताओं को इस निति पर लाना  चाहा कि  स्वतंत्रता के लिए इंग्लैंड के दुश्मनो की सहायता ली जाए।

 

 

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