प्रथम विश्व युद्ध के कारणों का वर्णन :-
नेपोलियन के पतन के बाद से बाल्कन प्रायद्वीप में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने लगी थी और बीसवीं सदी के शुरू होते होते उसने इतना भीषण स्वरूप धारण कर लिया था कि बाल्कन प्रायद्वीप यूरोप का ज्वालामुखी कहा जाने लगा। यूरोप के विभिन्न शक्तियों की शक्ति आजमाइश कार्यक्षेत्र अखाड़ा बन गया था। इसकी महत्वकांक्षी आएं अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए टकराती रही थी। इस बीच इन राज्यों की अनिश्चितता गुड बंदी ने ना केवल संदेशों को जन्म दिया। अभी तो विश्व को प्रथम विश्व युद्ध के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था।
प्रथम विश्व युद्ध के निम्नलिखित कारण थे।
1 ) गुप्त संधि:–
प्रथम विश्व युद्ध के अन्य कारणों के अतिरिक्त उन गुप्त संधियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी जो राजऔ या राज्यों के बीच हुई थी किंतु जिन का पता या अंदाज राज्य की जनता अथवा अन्य वरिष्ठ कर्मचारियों को नहीं थी।1879 ईसवी में जर्मनी ने ऑस्ट्रेलिया हंगरी के साथ गुण संधि की थी, जिसमें 1882 ईस्वी इटली भी शामिल हो गया। बिस्मार्क के पतन के पश्चात फ्रांस – रूस आपस में चुपचाप 1894ईस्वी में संधि के साथ मित्र बने। इंग्लैंड ने जो अब तक अलग थलग रह रहा था 1902 में जापान 1904 में फ्रांस और 1907 में रूस के साथ संधि की, रूस की क्रांति 1917 ईस्वी के उपरांत आरोपी का पर्दाफाश हुआ था। इन संधियों के कारण हर रोज एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखता था। की जनता समय को ध्यान में रखकर यहां शासको से कुछ अपेक्षा रखती थी जबकि शासकाका बर्ताव अनिश्चित हुआ करता था। संधि में खुलापन न रहने के कारण यूरोपीय राज्य एक दूसरे के निकट खींचे चले आए।
2 ) उग्र राष्ट्रीयता:-
राष्ट्रीयता या देश भक्ति जनता के स्वाभिमान को इतना अधिक उभार देती है कि वह अन्य देश वासियों की अपेक्षा अपने को श्रेष्ठ समझने लगता है। बालतः स्वयं को अन्य राज्य के नागरिकों से ऊंचा समझन उग्र राष्ट्रीयता होता है। इसमें एक देश के नागरिक दूसरे देश के नागरिको को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं तथा अपने राजा या शासन पर अपरोक्ष दबाव डालते हैं कि वह उसके स्वाभिमान की रक्षा करें तथा दूसरे प्रभावी राज्य का मानमर्दन करें। प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व जर्मनी फ्रांस ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड में ही उग्र राष्ट्रीयता का लक्षण नहीं दिखलाई पड़ते थे। अभी तू बाल्कन प्रायद्वीप के छोटे-छोटे राज्य, यूनान, सर्विया आदि पर भी राष्ट्रीयता का नशा चढ़ चुका था। इसके अतिरिक्त पोल, स्लाव , चेक आदि जाति भी घुटन की जिंदगी जी रहे थे। इस प्रकार जब छोटे छोटे राज्य अपनी संस्कृति अपना धर्म अपनी सभ्यता का पाठ दूसरे देश के नागरिकों को पढ़ाने तथा उन पर थोपने के लिए उतावले होने लगे थे तो अवरोध और युद्ध निश्चित हो गया था।
3) तीसरा समाचार पत्रों की भूमिका: –
जनमत को युद्ध के कगार पर लाने में विभिन्न देशों के समाचार पत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बेबुनियाद अनर्गल एवं उत्तेजक समाचारों द्वारा सस्ती लोकप्रियता अर्जित कर ली थी और ऐसा जनमत तैयार कर दिया था तो सरकार पर दबाव डालने लगा था कि अपने देश की प्रतिष्ठा के लिए दूसरे देशों को देशों के दुश्मनों को पाठ पढ़ाना आवश्यक है जिसके कारण एक-दूसरे देश यह सभी देश एक दूसरे के विरुद्ध हो गए और प्रथम विश्व युद्ध का यह भी एक बहुत महत्वपूर्ण कारण रहा था।
4 ) उपनिवेश विस्तार:–
व्यावसायिक क्रांति के फलस्वरूप कतिपय यूरोप देशों में मशीनरीलिए करण बहुत तेजी से हुआ तथा फैक्ट्री से अधिक मात्रा में माल का उत्पादन होने लगा। उत्पादित माल के लिए बाजार की तलाश में उन देशों ने ऐसे देशों या छोटे बड़े राज्यों या उसके हिस्सों पर अधिपत्य जमाना शुरू कर दिया था, जहां उनके माल की खपत हो सके। यूरोप का प्राया हर देश संसार के प्रत्येक कोनों में अपना बाजार स्थापित करना चाहता था। जर्मन और इंग्लैंड प्रबल प्रतिद्वंदी एवं दुश्मन बन गए थे। जर्मनी के सम्राट के सर विलियम ने उपयुक्त उद्देश्य अपनी नाव शक्ति एवं जहाजी बेड़ों को सशक्त एवं समृध करना प्रारंभ कर दिया। इंग्लैंड किसी देश की नाव शक्ति को बढ़ाता नहीं देख सकता था। इसीलिए इंग्लैंड एवं जर्मनी के संबंध इतने खराब हुए कि दोनों देश युद्ध की मानसिकता स्थिति में आ गए थे।
5 ) सैनिकवाद:-
19वीं शताब्दी के अंत आते-आते तक यूरोप के अनेक देश युद्ध के उन्माद से विक्षिप्त दिखलाई पड़ने लगे थे। सभी इस आशंका में थे कि कभी न कभी युद्ध हो सकता है। अपनी सैनिक तैयारियों तथा सैनिक सामग्रियों कड़ी मेहनत से दिन रात जुटाने में लगे हुए थे। फ्रांस जर्मनी जैसे प्रमुख यूरोपीय राज अपनी राष्ट्रीय आय का 85% सैनिक तैयारी पर व्यय करने लगे थे। सभी देश में सैनिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गई थी। 1898 ईस्वी तथा 1907 ईस्वी में हेग में दो बार इस उद्देश्य से सम्मेलन बुलाया गया कि संसार में युद्ध सामग्री के उत्पादन पर नियंत्रण रखा जाए। किंतु दोनों सम्मेलन निरर्थक रहे
6 ) फ्रांस – जर्मनी संबंध :-
प्रथम विश्व युद्ध के गर्भ में फ्रांस का राष्ट्रीय अपमान भी था। जब प्रशा ने उसे पराजित कर सन 1871 ईस्वी में उससे लॉरेन एवं उल्लास के प्रांत छीन लिए थे तथा उसे युद्ध का हर्जाना भी भरना पड़ा था। फ्रांस अपने प्रांत वापस लेना चाहता था, परंतु जर्मनी को पराजित करने की गोटियां सदा बैठाया करता था। फ्रांस जर्मनी वैमनस्य ने विश्व को युद्ध के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया।
7 ) पूर्वी समस्या:-
प्रथम विश्वयुद्ध का मुख्य कारण बाल्कन प्रायद्वीप की समस्या थी। तुर्की की दुर्बलता मेसेडोनिया को लेकर यूनान,सर्विया,बूलगारिया, में घिरणजनक फुट ना केवल पश्चिमी यूरोप का ध्यान आकर्षित किए हुए था। अपितु रूस भी पूर्वी समस्या की ओठ में अपने सुरक्षा कवच बनाने की ताक में था रूस ने 1908 ईस्वी में बोसनिया की समस्या को सुलझाने में सर्विया का साथ दिया। वह पूर्व की और भी साम्राज्य विस्तार की योजना बना रहा था।
8 ) बोसनिया एवं हर्जेगोविना की समस्या :-
पूर्वी यूरोप के इन दोनों प्रांतों का शासन प्रबंध आस्ट्रीया एवं हंगरी के हाथ में था, किंतु वे इनका विलय कराकर के अनुसार अपने राज्य में मनहीं मिला सकते थे। किंतु किसी की चिंता ना कर उन दोनों ने इन प्रांतों को अपने देश में मिला लिया। सांवरिया ने विरोध किया तथा बोशनिया और हर्जेगोबिना स्वतंत्र होने के लिए विद्रोह कर रहे थे। रूस परोक्ष रूप से उनकी मदद कर रहा था। इस प्रकार आस्ट्रीया -रूस तनाव में आ गया।
9 ) तत्कालीन कारण साराजेवो हत्याकांड:-
उपर्युक्त कारणों ने प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि अवश्य तैयार कर रखी थी, किंतु इसमें आग लगाने का काम था। साराजेवो हत्याकांड 28 जून 1914 ईस्वी है, जिसे इतिहासकरो ने तत्कालीन कारण की संध्याध्या देते हैं। 8 जून 1914 ईस्वी को आस्ट्रीया के उत्तराधिकारी राजकुमार आर्च डयुक फर्डिनेंड अपनी पत्नी के साथ बोस्निया की राजधानी सरजेवो का दौरा करने के लिए गए जहां एक नागरिक ने बम मारकर उनकी हत्या कर दी या एक विद्रोह कार्य था तथा आस्ट्रीया को पूरा विश्वास था कि इस हत्याकांड को प्रोत्साहन सर्व सरकार ने दिया था। इस घटना के लगभग एक माह बाद जर्मनी को विस्वास में लेकर आस्ट्रीया ने सर्विया को 48 घंटेमें की नोटिस भेजी थी और उसके सम्मुख 12 कटोर शर्तें भी रखी जिन पर। इगलैंड के विदेश मंत्री सर एडवर्ड ने टिप्पणी की। मैंने आज तक किसी देश को एक दूसरे स्वतंत्र देश में ऐसी कड़ी शर्ते मानते हुए नहीं देखा है। किंतु विवश सर्विया ने 12 में से 9 शर्ते आश्चर्य मान ली तथा शेष तीन के लिए भी समय मांग तथा आश्वासन दिया कि मान लिया जाएगा। यदि ऑस्ट्रिया सर्विया उत्तर से संतुष्ट नहीं होता तो अंतरराष्ट्रीय न्यायालय हेग में महान शक्तियों का सम्मेलन बुलाकर फैसला कर लिया जाता पर 28 जुलाई 1914 को आस्ट्रेलिया ने जो युद्ध के लिए उतावला हो रहा था। सर्विया पर आक्रमण करने की घोषणा कर दी थी।इस घटना से 1914 ईस्वी में प्रथम विश्वयुद्ध का को आरंभ हुआ। फ्रांस ने रूस के साथ संधि पर ऑस्ट्रीया के विरुद्ध उसकी सहायता का वचन दिया। जबकि रूस ने अपने सैनिकों को ऑस्ट्रीया के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेज दिया। रूस की बाध्यता थी अन्यथा युद्ध उसकी सीमा के निकट छूट जाता। प्रारंभ में इंग्लैंड एवं जर्मनी इस युद्ध को सीमित रखने के पक्ष में थे। किंतु जर्मनी भी युद्ध में खुद पड़ा। इस प्रकार विश्व युद्ध के बड़े राष्ट्रीय दो गुटों में विभाजित होकर महा विनाशक युद्ध में जुट गए।