Monday, December 23, 2024
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शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (ILLTUTMISH) गुलाम वंश/दिल्ली सल्तनत

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (ILLTUTMISH) गुलाम वंश/दिल्ली सल्तनत

दिल्ली शासक इल्तुतमिश की शासन पद्द्ति, राज्यारोहण, इमारतों का निर्माण, सैनिक व्यवस्ता, मुद्रा, युद्ध और मृत्यु के बारे में पढ़ेंगे।

इल्तुतमिश का पूरा नाम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश इलबरी था।  तुर्क शाखा के सरदार दालम खां का पुत्र था। वह  ब्ल्याकाल में अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि , गुणवान तथा रूपवान था जिसके कारण उसके भाइयों ने उसे सौदागर जमालुद्दीन के हाथों  बेच दिया।  इसके बाद किसी काजी ने उसे खरीद उसके बाद एक सौदागर के द्वारा लाया गया जहाँ कुतुबुद्दीन ने उसे खरीद लिया। प्रकार इल्तुतमिश गुलामों का गुलाम था।  कुतुबुद्दीन ने उसके साथ बड़ा अच्छा व्यवहार किया तथा शीर्घ ही उसके गुणों से प्रभावित होकर  सरजानदार के पद पर आसीन कर दिया।  सरजानदार शाही अंगरक्षकों का प्रधान होता था।  इल्तुतमिश ने भी अपने स्वामी के प्रति हमेशा वफादारी का व्यवहार किया। 1205 ईस्वी में उसने खोक्खोरो के विरुद्ध युद्ध में असीम वीरता तथा साहस का प्रदर्शन किया था जिसके कारण  मुहम्मद गोरी ने उसे दासता से मुक्त कर दिया था।  ग्वालियर की विजय के बाद उसे ग्वालियर का किलेदार नियुक्त क्र दिया गया।  इसके बाद उसे बरन का गवर्नर नियुक्त किया गया।  कुतुबुद्दीन उसकी योग्यता से इतना प्रभावित था कि उसने अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश से कर दिया। कुतुबुदीन  मृत्यु के बाद दिल्ली के नागरिकों  तथा अधिकारियों ने मुख्य काजी के परामर्श पर दिल्ली आमंत्रित किया  उसे सुलतान बनने का आग्रह किया। आरामशाह को पराजित करके उसने सुलतान पद सुरक्षित कर लिया। 

राज्यारोहणइल्तुतमिश के राज्यारोहण का आधार निर्वाचन था। दिल्ली के नागरिकों ने उसका निर्वाचन किया था।  क्योंकि उस संकट काल में वे एक अनुभवी सैनिक तथा प्रशासक का नेतृत्व चाहते थे जो उन्हें सुरक्षा प्रदान क्र सके।  उन्हें निर्बल और अयोग्य आरामशाह के नेतृत्व विश्वास  नहीं था।  आरामशाह का निर्वाचन लाहौर के नागरिकों का कार्य था।  ऐसी स्थिति में युद्ध अनिवार्य हो गया था।  इसमें इल्तुतमिश को सफलता मिली। इस प्रकार अपनी योग्यता से इल्तुतमिश ने अपने निर्वाचन के ओचित्य को प्रमाणित किया।  

 

विभाजित साम्राज्य इल्तुतमिश केवल दिल्ली राज्य प्राप्त हुआ था।  कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद ही तुर्क सल्तनत चार भागों में विभाजित हो गई थी।  दिल्ली और लाहौर फुट और संघर्ष नीति का भी दुष्प्रभाव पड़ा था।  सुदूर बंगाल की राजधानी लखनौती में गवर्नर अली मर्दान ने अपनी स्वतंत्रता  घोषणा क्र दी थी और मिन्हाज अनुसार उसनेसुलतानकी उपाधि के साथ सिक्के भी जारी किये थे।  कुबाचा ने  अवसर का लाभ उठाकर मुल्तान पर कब्जा कर  लिया और भटिण्डा, कुहराम और सरस्वती तक अपना राज्य विस्तृत कर लिया। पश्चिमी पंजाब पर एल्दौज का अधिकार था।  

राजपूत राजाओ का स्वतंत्र होना कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद तुर्क सल्तनत छिन्नभिन्न हो गई थी।  स्थिति का राजपूत राजाओं ने लाभ उठाकर स्वतंत्रता घोषणा कर  दी।  उन्होंने दिल्ली को कर  भेजना बंद कर दिया।  इनमें जालौर और रणथम्भोर प्रमुख थे। अजमेर, ग्वालियर, बयाना और दोआब के राजपूतो  तुर्को के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इल्तुतमिश के अधिकार में केवल दिल्ली, बदायू, पूरब में वाराणसी तथा उत्तर में शिवालिक पहाड़ियों का क्षेत्र था। 

एल्दौज का दिल्ली सल्तनत पर दावागजनी का शासक एल्दौज दिल्ली तुर्क साम्राज्य पर अपना दवा कुतुबुद्दीन  ऐबक के समय से क्र रहा था।  ऐबक मृत्यु के  संकट इल्तुतमिश  सामने भी था और इल्तुतमिश  शक्ति इतनी नहीं थी  यल्दौज  संघर्ष कर  सकता। 

कुतुबी आमिर  अनेक कुतुबी आमिर इल्तुतमिश के विरोधी थे।  विशेष रूप  लाहौर के कुतुबी  आमिर रुष्ट थे।   आरामशाह का समर्थन किया था और वे इल्तुतमिश को सुलतान मानने के लिए तैयार नहीं थे।  वे दिल्ली में भी उसके विरुद्ध षड्यंत्र कर  रहे थे। 

नसिरुदिन कुबाचा वह मुल्तान और कच्छ  का मालिक बन गया था और लाहौर, कुहराम, सुरस्ती का प्रदेश उसने जीत लिया था  दिल्ली के तख्त पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहता था। 

अलीमर्दान खिलजी यह बंगाल का शासक था और बिहार में भी अपनी ताकत बढ़ा  रहा था।  उसने अपने आपको स्वतंत्र शासक घोसित कर दिया था। 

इल्तुतमिश की सफलतायें कार्य — इल्तुतमिश की स्थिति इतनी सशक्त नहीं थी की वह इन  समस्याओं का एक साथ सामना कर सकता।  अतः सैनिक उपायों के स्थान पर उसने कूटनीति का लिया और  एक एक समस्याँ को धैर्यपूर्वक सुलझाया। 

 

आरामशाह —  आरामशाह शासन के सवार्थ अयोग्य था।  उसकी  विश्वास नहीं रखती थी।  जब दिल्ली के पास पहुँचा तो इल्तुतमिश ने जुड़ के नजदीक उसे हरा दिया और बाद में उसका वध करवा दिया। 

 

तुर्क अमीरो दमन इल्तुतमिश बड़ा यथार्थवादी एवं कूटनीतिज्ञ था।  उसने एकएक करके सभी विरोधी सरदारों का दमन किया और अपनी सुदृढ़ सम्प्रभुता स्थापित की 

 

एल्दोज से समझौता इल्तुतमिश ने एल्दोज से समझौता करने की नीति अपनाई जो केवल एल्दोज से संघर्ष टालने का प्रयास था।  एल्दोज ने दिल्ली सल्तनत पर सार्वभौमिक सत्ता का दावा करने के उदेश्य से इल्तुतमिश को छत्र, दण्ड आदि राजचिन्ह भेजे जिन्हे इल्तुतमिश ने स्वीकार करने का बहाना किया। 

 

अमीरों  का दमन –  समय इल्तुतमिश  समक्ष  गम्भीर  संकट उतपन्न हो गया, जब दिल्ली के सैनिक रशको (जानदार ) ने आरामशाह की पार्टी से मिलकर विद्रोह कर  दिया। इस विद्रोह का दमन करने में काफी रक्तपात के बाद इल्तुतमिश ने सफलता पाई। इन कुतुबी अधिकारियों में कई ऐसे भी थे जो पद में उसके बराबर रह चुके थे। 

 

एल्दोज का दमन  एल्दोज की सत्ता का दमन करने का अवसर इल्तुतमिश को 1215 ईस्वी मिला।  एल्दोज ने कुबाचा को लाहौर से निकालकर पंजाब के अधिकांश भाग पर अधिकार क्र लिया। था  इल्तुतमिश के लिए यह गम्भीर संकट था क्योकि  ख्वारिज्म का  शाह गजनी जीतने के बाद पंजाब पर भी आक्रमण करेगा।   इल्तुतमिश ने इसके लिए तुरंत सैनिक कार्यवाही नहीं की बल्कि अवसर  प्रतीक्षा की।  1214 ईस्वी  में ख्वारिज्म के शाह ने गजनी पर अधिकार  लिया।  एल्डोज भागकर लाहौर गया और उसने दिल्ली पर अपना दावा किया।  इल्तुतमिश ने अब निश्चयात्मक कार्यवाही  और तराइन के युद्ध में  पराजित किया और बंदी बनाकर बदायुँ के किले में भेज दिया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गई।  इस प्रकार  एल्दोज का संकट समाप्त कर  दिया गया। 

 

इस विजय बाद भी इल्तुतमिश ने लाहौर पर अधिकार नहीं किया वरन कुबाचा अधिकार में ही रहने दिया।  लेकिन वर्ष बाद 1217  ईस्वी में उसे जित क्र दिल्ली सल्तनत मिला लिया। 

 

कुबाचा का अन्त – इल्तुतमिश  पर कुबाचा का दो बार संघर्ष हुआ। 1217  ईस्वी में कुबाचा ने इल्तुतमिश की अधीनता मान ली।  इल्तुतमिश ने भटिण्डा , कुहराम और सुरसती के प्रदेश भी जित लिए. परन्तु बाद में कुबाचा  को पुनः स्वतंत्र घोषित क्र दिया।  इल्तुतमिश उसके दमन के लिए सेना भेजी।  कच्छ को जीत लिया गया।  कच्छ के पतन के समाचार से कुबाचा इतना भयभीत हो गया कि सुल्तान के पास अपने लड़के को भेज दिया तथा अपनी प्राणरक्षा के लिए वह एक नाव में बैठकर सिन्ध नदी पार करके भागना चाहता था।  परन्तु दुर्भाग्यवश नाव डूबने से वह नदी में  डूबकर मर गया था तथा इल्तुतमिश को अपने प्रबल प्रतिद्वेंदी से मुक्ति मिली। 

 

बंगालविजय बंगाल अलीमर्दान ने दिल्ली से सम्बन्ध विच्छेद कर  दिया था और वह स्वतंत्र शासक  के रूप में राज्य कर  रहा था किन्तु  उसके क्रूरतापूर्ण व्यवहार से कुछ अमीर उससे अप्रसन्न हो गये और उन्होंने उसकी हत्या कर डाली तथा उसके स्थान पर ईवाज को राजा बनाया।  ईवाज ने बिहार को भी जित कर अपने राज्य में मिला लिया था।  1225 ईस्वी में इल्तुतमिश ने बिहार पर अधिकार  कर लिया और मलिक जानी को वहाँ का शासक नियुक्त किया।  किन्तु इल्तुतमिश के लौटते ही वह  पुनः आजाद हो गया।  बाद में इल्तुतमिश ने अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को वहाँ भेजा।  

 

1226 ईस्वी में महमूद ने लखनौती पर आक्रमण किया।  इस युद्ध में ईवाज हार गया और मारा गया।  परन्तु नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु पर लखनौती में पुनः विद्रोह हुआ।  ईवाज के पुत्र बल्का ने अपाने पुत्र  को पुनः शासक घोषित कर दिया।  1230  ईस्वी में स्वयं इल्तुतमिश विद्रोह दबाने गया गया।  बल्का युद्ध में  हारा और मारा गया।  बंगाल पर इल्तुतमिश का अधिकार हो गया। 

 

मंगोल आक्रमण — सन 1221 ईस्वी में इल्तुतमिश पर एक नया संकट मंगोल आक्रमण के रूप में आया।  इनका नेता खूँखार चंगेज खां था। चंगेज खां  ख्वारिज्म के शाह जल्लालुद्दीन  मगबनी का पीछा करता हुआ सिन्ध तक पहुँच।  जलालुदीन मगबर्नी ने इल्तुतमिश के पास एक दूत भेजा तथा कुछ समय के लिए दिल्ली के पास रहने की अनुमति मांगी। परन्तु इल्तुतमिश अत्यंत दूरदर्शी था। अंतः  उसने मगबनी से नरंतपूर्वक कहलवा दिया की दिल्ली की जलवायु इसके अनुकूल नहीं है तथा उसके दूत की हत्या करवा दि।  मगबनी वीरतापूर्वक मंगोलों से लड़ा परन्तु अन्त में वह पराजित हुआ।  मंगोल भी भीषण गर्मी  के कारण सिन्ध से वापस लौट गये।  इस प्रकार अपनी दूरदर्शिता से इल्तुतमिश ने खतरे से भारत को बचाया। 

 

राजपूतों से युद्ध – इल्तुतमिश ने 1216 ईस्वी में सर्वप्रथम रणथंभौर पर आक्रमण किया और उसे अपने अधिकार में कर लिया।  फिर उसने उसी साल मंदसौर जीता।  1230 ईस्वी से पहले ही जालोर, बयाना, अजमेर और नागौर के प्रदेश जित लिए।  1231 ईस्वी में उसने ग्वालियर को जीता और 1234 ईस्वी में मालवा पर भी अधिकार कर अपार सम्पति प्राप्त की। 

 

 

दो आब की पुर्विजय राजधानी में अपनी स्थिति शुदृढ़  करने के बाद उसने दो आब के सभी प्रदशों को  जित लिया। 

 

खलीफा का आधिकारिक पत्र – इल्तुतमिश ने दिल्ली क्षेत्रों की पूर्णविजय के द्वारा सल्तनत को फिर से स्थापित किया। इस कार्य में उसे पच्चीस वर्ष लगे और इस दीर्घकाल में उसने सल्तनत को स्थायित्व प्रदान किया।  दिल्ली सल्तनत तथा सल्तनत पद की वैधानिक मान्यता के लिए उसने खलीफा अलमुस्तगीर बिल्लाह से अधिकारपत्र और खिलअत प्राप्त की।  इस प्रकार वह दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक और उसका प्रथम सुलतान था। 1236 ईस्वी में बानियान जाते समय मार्ग में इसकी मृत्यु हो गई। 

 

इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने अनेक विजय प्राप्त की थी, लेकिन उसमें प्रशासनिक संगठन की योग्यता नहीं थी। अतः अनेक विद्वान कुतुबुद्दीन को भारत में मुस्लिम राज्य का संस्थापक नहीं मानते। डॉक्टर ईश्वरी प्रसाद के अनुसार इल्तुतमिश दास वंश का वास्तविक संस्थापक था। 

 

एक कुशल कूटनीतिज्ञ की भांति उसने मगबर्नी  को दिल्ली में शरण  नहीं दी और हिंदुस्तान को मंगोलों से बचा लिया। इस प्रकार एल्दौज की  संप्रभुता उसने स्वीकार कर ली, परंतु अपनी स्थिति सुधर जाने के बाद उसने भीड़ गया। इस प्रकार की नीति उसने कुबाचा  के साथ भी अपनायी।  

 

 इल्तुतमिश एक कुशल प्रशासक  भी था। वह राजदरबार के षड्यंत्र  से भलीभांति परिचित था। वह चाहता था कि गुलामों का एक ऐसा गुट  बनाया जाए जो पूरी तरह उसकी मदद करें। अतः उसने 40 तुर्की अमीरों के दल  का संगठन किया जोचहलगान ‘  के नाम से पुकारा जाता था। इसेमस्तूलसल्तनत  यानी राज्य का स्तम्भ  भी कहा जाता था।

 

वह न्यायप्रिय शासक  था। उसने सभी बड़े बड़े नगरों में काजी आदि नियुक्त किए। जिनके  निर्णय के विरुद्ध अपील प्रधान काजी अथवा वह  स्वयं सुना करता था। प्रसिद्ध इतिहासकार इबनबतूता के अनुसार सुल्तान के महल के सामने संगमरमर के दो सिंह  बने होते थे, जिनके गले में घंटियां लगी हुई थी। सताया हुआ व्यक्ति इस घंटियां को बजाता था। उसकी फरियाद सुन कर तुरंत न्याय की व्यवस्था की जाती थी। जो स्वयं इल्तुतमिश के द्वारा होती थी या व्यवस्था रात्रि के लिए की गयी था।  दिन के समय अभियोगी एक विशेष प्रकार का लाल वस्त्र पहनकर अपनी फरियाद सुनाता था।

 

इल्तुतमिश का चरित्र मूल्यांकन 

 

इल्तुतमिश के मुद्रा संबंधी सुधार उल्लेखनीय है। उसने शुद्ध अरबी मुद्रा का प्रचलन जो किया जो तोल में 175 ग्रेन  का होता था। चांदी का सिक्का  टंक  कहलाया और तांबे का सिक्का जीताल  उसने ही चलवाया टंक  पर ढलाइ  वाले शहर का नाम भी अंकित रहता था। 

 

 

 

मुद्रा

 

 

 

इल्तुतमिश  एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसने इसी संप्रदाय के लोगों को राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया था। वह धर्म भीरु था। वह प्रतिदिन नियमपूर्वक  पांच बार नमाज पढ़ता था और अन्य धार्मिक कृत्य करता था। डॉक्टर ईश्वरी के अनुसार यद्यपि इल्तुतमिश  युद्ध और आक्रमण में ही व्यस्त रहा। परन्तु वह धार्मिक पुरुषों और विद्वानों का आदर करता था।

 

वह हिंदुओं के प्रति असहिष्णु  था। उसने हिंदुओं के बहुत से मंदिरों को नष्टभ्रष्ट कर डाला तथा बहुत से हिंदुओं का वध करवाया।

 उसने अनेक साहित्यकारों का दरबार में शरण दिया , जिन्होंने साहित्य के विकास में योगदान दिया। उसने दरबार में मिनहाजुस्सिराजताजुद्दीन निजामुल्मुक मुहम्मद जुबैदि, मलिक  कुतुबुद्दीन हसन, गौरी एवं फखरुलमुल्क इमामी  जैसे विद्वान थे। वह वास्तुकला का भी प्रेमी था।

 

इसी के समय कुतुबमीनार बनकर तैयार हुईउसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई और नगर में तलाब मदरसे, मस्जिद एवं भव्य इमारतें भी बनवाए। इल्तुतमिश ने केवल 25 वर्ष तक राज किया, परंतु उसे मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। यद्यपि प्रथम मुसलमान सुल्तान कुतुबुद्दीन था, परंतु उसने मुस्लिम साम्राज्य को सुव्यवस्थित एवं सुदृढ़ नहीं बनाया।  ऐबक को  खुद इतना अवसर नहीं मिला कि वह अपने राज्य को संगठित कर सके। वह केवल 4 वर्ष तक शासन कर सका और उसके 4 वर्ष लड़ाई में ही बीत गए। उसके काल में  मुसलमान आक्रमणकारी भारत में विदेशी थे, जिससे  भारत की जनता भयभीत भी हो गयी थी और नफरत भी करती थी। परंतु इल्तुतमिश के काल में मुस्लिम राजकीय सदृढ़ हो गई। उसने सुसंगठित शासन की व्यवस्था की एवं न्याय का उचित प्रबंध किया तथा साथ ही साथ नए सिक्के चलाएं, खलीफा के प्रमाण पत्र प्राप्त के नैतिक दृष्टिकोण से भी उसने दिल्ली के सुल्तान पद को प्राप्त किया।  जिनको उसकी मुसलमान जनता ने मान्यता प्रदान की

 

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