Saturday, July 27, 2024
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The status of women in the reformist bhakti movement./सुधारवादी भक्ति सम्प्रदाय/आंदोलन में नारी की स्थिति।

 

Q. सुधारवादी
भक्ति सम्प्रदाय/आंदोलन में नारी की स्थिति पर एक नोट। 



 ANS:- मध्यकालीन भारत के इतिहास में भक्ति आंदोलन का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।  इस आंदोलन ने केवल धार्मिक वरन  सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों को भी व्यापक रूप से प्रभावित किया।  भक्ति मार्ग के सन्तो  ने भक्ति मार्ग पर बल दिया क्योकि मध्य काल से प्रभावित समाज में अनेको कुरीतियों , अंधविश्वासों  एवं आडम्बरों  का प्रवेश हो  चुका  था।  भक्ति आंदोलन कोई सुनियोजित , सुव्यवस्थित एवं समयबद्ध आंदोलन नहीं था।  इसमें समयसमय पर अनेकों  सुधारक संत जन्म लेते रहे।  इन्ही सुधारको के सामूहिक प्रयत्नों कोभक्तिआंदोलनकहा गया। 

 

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत अग्रलिखित थेरामानुजाचार्य , गुरु रामानन्द , तुलसीदास , नामदेव , चैतन्य , बल्लभाचार्य , रैदास , मीरा , कबीर।  गुरु नानक आदि।  जिस काल में स्त्रियों व् शुद्रो  को पूजापाठ का भी अधिकार नहीं था , संतो ने उन्हें समाज में सम्मानीय स्थान दिलाने का प्रयास किया।  परिणामस्वरूप एक बड़ी संख्या  में स्त्रीभक्तो का बारबार उल्लेख हुआ है। 


भक्ति आंदोलन का नारी स्थित पर प्रभाव :भक्ति आंदोलन ने सामाजिक समानता पर विशेष रूप से बल दिया।  परिणामस्वरूप स्त्रियों की दशा में भी पर्याप्त सुधार  आना स्वाभाविक था। 

  

( i ) धार्मिक
अधिकारभक्ति अंदोलन के परिणामस्वरूप स्त्रियों के लिए धर्म के द्वार खुल गए। अब स्त्रियों को भी पुरुषो के समान स्वतंत्रतापूर्वक भक्ति करने का अधिकार था।  विधवाओं को भी धर्म सम्बन्धी अधिकार प्रदान किए गए इससे पूर्व वे बहिष्कृत जीवन व्यतीत करने के लिये  विवश थी।  स्त्रीसन्तो  की परम्परा भी अस्तित्व में आई।  इस महिलासन्तो  ने उच्च कोटि के साहित्य का भी सृजन किया। 

 

( ii ) सामाजिक
अधिकारसुधार  आंदोलन के परिणामस्वरूप स्त्रियों को व्यापक सामाजिक अधिकार भी प्राप्त हुए।  नानक
अपरदास ने पर्दे की प्रथा का पुर्णसुपर्ण उन्मूलन करने का प्रयास किया।  स्त्रियाँ सार्वजनिक कार्यकर्मो में एक बड़ी संख्या में भाग लेने लगी।  धार्मिक कृत्यों में सम्मिलित होने के लिए उन्हें अब घर से बाहर जाने की भी स्वतंत्रता थी।  कतिपय
सन्त अपनी कीर्तन मण्डली के साथ गलीगली घूमते थे तथा उनके अनुयायियों में पुरुषों  के समान स्त्रियाँ   भी समान रूप से सम्मिलित थी।  अतः  स्त्रियाँ  भक्त रूप में स्वतंत्र रूप से विचरण करने लगी।  ऐसे में पर्दाप्रथा के अस्तित्व का तो कोई प्रश्न ही नहीं था।  सन्यास लेने से  पूर्व
पत्नी की सहमति प्राप्त करना आवश्यक था।  ज्ञान
देव  के पिता ने पत्नी की सम्मति के बिना सन्यास लिया अतः  उन्हें पुनः गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना पढ़ा। 

 

भक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप स्त्रियों को व्यापक अधिकार प्राप्त हुए।  उन्हें भी पीटीआई के साथ गृहस्थाश्रम त्यागने का पूर्ण अधिकार है।  इस प्रकार मोक्षप्राप्ति में वह पीटीआई की सहधर्मिणी थी।  उदाहरणार्थ दीदा नामक राजा ने अपनी छोटी रानी के साथ सन्यास लिया था। 

 

भक्तिआंदोलन के सन्तो  ने मातृभाषा को प्रचार का माध्यम बनाया।  साथ ही देवताओं  के साथसाथ विभिन्न देवियो की पूजा भी प्रारंभ  हुई। 
श्री नारायणलक्ष्मी एवं  राधाकृष्ण की भक्ति का प्रचार हुआ।  इस वातावरण से भी स्त्रियों के महत्व में वृद्धि हुई।  इस प्रकार भक्ति आंदोलन ने स्त्रियों को नवजीवन प्रदान किया। 

 

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महलवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/ What is Mahalwari and Ryotwari system?————-

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रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/What is Rayotwari System? ————————

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