Q- राष्ट्र संघ के पतन के कारणों का उल्लेख।
ANS- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्र संघ की स्थापना इसी उद्देश्य की गई थी कि वह संसार में शांति बनाये रखेगा, लेकिन जब समय व्यतीत होने लगा और परीक्षा का अवसर आया तो राष्ट्र संघ एक शक्तिहीन संस्था साबित हुई। जहां तक छोटे-छोटे राष्ट्रों के पारस्परिक झगड़ों का प्रश्न था। राष्ट्र संघ को आंशिक सफलता मिली, परंतु कुछ गंभीर समस्या के समाधान थे। राष्ट्र संघ कुछ नहीं कर सका। जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया और इटली ने अभी अबीसीनिया पर हमला कर दिया पर राज्य संघ उसको रोकने में बिल्कुल असमर्थ रहा। अधिनायको को पता चल गया कि राष्ट्र संघ एक शक्तिहीन संस्था है। इस हालात में राष्ट्र संघ का शांति संस्थापक के रूप में सफल होना असंभव था। इसकी असफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित है।
1 ) वर्साय की संधि का श्रेय:- राष्ट्र संघ की सफलता विश्व की जनता और सरकारों की सद्भावना पर निर्भर करती थी। इसके अलावा प्रारंभ से सद्भावना पूर्ण वातावरण का निर्माण होना चाहिए था। परंतु राष्ट्र संघ के संस्थापकों ने ठीक इसका उल्टा किया। उन्होंने राष्ट्र संघ के संविधान को भी वर्साय की संधि तथा अन्य विजित राष्ट्रो के साथ की गई संधियों के साथ जोड़ दिया। फल यह हुआ कि प्रारंभ से ही पराजित देशो के लोग इन्हें संदेह की दृष्टि से देखने लगे। उन्होंने यह समझा कि यह विजयी देशों के संघ है जो उन पर बलपूर्वक लाद दिया गया है। इसे डाकू का अड्डा तथा संगठित पाखंड (Organised Hypocrisy) तक कहा गया।
2) प्रमुख देशों का राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं बनना:- अमेरिका का राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन राष्ट्र संघ का जन्मदाता था, परंतु अमेरिका ही राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं बना। रूस भी 1935 ईस्वी तक राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं था। इससे ब्रिटेन और फ्रांस को अपनी मनमानी करने की छूट मिल गई। उन पर नियंत्रण करने वाला कोई नहीं रहा। अमेरिका ही एक ऐसा राष्ट्र था जो उन पर अंकुश लगा सकता था और उसके अभाव में राष्ट्रसंघ ब्रिटेन एवं फ्रांस की कूटनीति का केंद्र बन गया। बहुत वर्षों तक रूस को भी इसका सदस्य नहीं बनने दिया गया। जिससे लोग के मन में या बात जम गई कि या पूंजीवादियों और साम्राज्यवादियो की संस्था है।
3) इंग्लैंड और फ्रांस की गलत नीति:- अमेरिका और रूस के अभाव में फ्रांस और ब्रिटेन की नीति पर ही राष्ट्र संघ की सफलता और विफलता निर्भर करती थी। दुर्भाग्य से इन राष्ट्रों में आपस में मेल नहीं था। फ्रांस जर्मनी जर्मनी के भय से घबराकर मुसोलिनी को प्रसन्न करने पर तुला हुआ था। ब्रिटेन जर्मनी का समर्थक था। इस प्रकार दोनों राष्ट्रों ने मिलकर हिटलर और मुसोलिनी को प्रसन्न करने की नीति अपनायी। फलतः हिटलर और मुसोलिनी की महत्वकांक्षी दिनों दिन बढ़ती गई और अंत में उसकी सर्वभक्षी महत्वाकांक्षा से समस्त यूरोप अपना शिकार बना लिया। ब्रिटेन और फ्रांस को एक गलतफहमी थी। वे समझते थे कि हिटलर और मुसोलिनी को अपनी ओर मिला कर भी उन्हें रूस के विरुद्ध मोड़ देंगे। इस कारण राष्ट्र संघ और जर्मनी के विरुद्ध ईमानदारी से कोई कदम नहीं उठाया।
Adolf Hitler
Benito Mussolini
4 ) जापान जर्मनी और इटली का त्याग पत्र:- 1933 ईस्वी में जापान, जर्मनी और इटली ने राष्ट्रसंघ से त्यागपत्र दे दिया। इससे राष्ट्र संघ बहुत कमजोर हो गया। राष्ट्र संघ के संविधान में 2 वर्ष की सूचना देकर त्यागपत्र देने का नियम बड़ा दोषपूर्ण था। इसका लाभ उठाकर अनेक राष्ट्रीय ने राष्ट्रसंघ से त्यागपत्र दे दिया। इससे भी राष्ट्र संघ की शक्ति घटी।
5 ) राष्ट्रीय स्वास्थ्य की प्रधानता :- राष्ट्र संघ के सदस्यों ने अपने राष्ट्र स्वार्थों को प्रधानता दी। सम्राट हेलेसिलसी ने राष्ट्रसंघ के सदस्यों की इस स्वार्थपारत पर भाषण देते हुए कहा- “Every one for himself…. It is certainly that they could be abandoned at Ethiopians been…..अगर सभी राष्ट्र अपना स्वार्थ देखेंगे तो सब का नाश एक-एक करके हो जाएगा। वास्तव में उसकी बात सच निकली।