देसाई – लियाकत समझौता
इस समझौते का सबसे बड़ा कारण भारत के आंतरिक अशांति का होना था। क्यूंकि अलग – अलग नेताओं और अलग – अलग समितियों द्वारा अनेक प्रकार की विचारधारा को प्रस्तुत की जा रही थी ताकि भारत के लोगों में आपसी मदभेद ना हो जाए। इन्ही प्रयासों के तहत क्रेन्द्रिय विधान मंडल मे कांग्रेस के नेता भूलाभाई देसाई तथा क्रेंद्रीय विधानमंडल में ही मुस्लिम लीग के उपनेता लियाकत अली से मिले तथा दोनों ने आपसी विचार – विमर्श से केंद्र अंतरिम सरकर के गठन हेतु प्रस्ताव तैयार किया। इस प्रस्ताव को 1945 में प्रस्तुत किया गया था।
इस प्रस्ताव में प्रवधान इस प्रकार था :-
* अंतरिम सरकार में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों केंद्रीय विधान मंडल से अपने समान सदस्यों को मनोनीत करेंगे।
* सदस्यों में 20 प्रतिशत स्थान अल्पसंख्यको, विशेषकर अनुसूचित जातियों तथा सिखों का प्रतिनिधित्व करना।
* वैसे सरकार का गठन करना जो उस समय के भारत शासन अधिनियम, 1935 के द्वारा कार्य करें।
इस समझौता प्रस्ताव के द्वारा कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के मध्य कोई सहमति होने की बात दूर रही यहाँ तक के दोनों के मध्य मतभेद और गहरे हो गये। बाद के वर्षो में इस मतभेद का व्यापक प्रभाव हुआ तथा विभाजन की धरणा की पुष्टि हो गयी।
समझौता का कारण
महात्मा गाँधी को ऐसा लगता था की जब तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों आपस में मिलकर भारत के भविष्य और अंतरिम सरकार के गठन को लेकर किसी निर्णय या निष्कर्ष तक नहीं जायेंगे तब तक ब्रिटिश शासक देश को स्वतंत्रता प्रदान नहीं करेंगे। जिसके कारण महात्मा गाँधी जी ने भूलाभाई जीवन देसाई को मुस्लिम लीग के नेताओं से अपनी मित्रता का लाभ उठाकर नेताओं को संतुष्ट करने और 1942 -1945 के राजनितिक गतिरोध को दूर करने का एक प्रयास करने निर्देश दिया गया।
निष्कर्ष
महात्मा गाँधी ने भूलाभाई देसाई मुस्लिम लीग के नेताओं को अपने साथ लाने वह राजनितिक गतिरोध को दूर करने के लिए प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया परन्तु कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के मध्य कोई सहमति होने की बात दूर रही यहाँ दोनों के मध्य मतभेद और गहरे हो गये। बाद के वर्षो में इस मतभेद का व्यापक प्रभाव हुआ तथा विभाजन की धरणा पुष्ट हो गयी।
आगे चलकर हमें भारत के लिए समय – समय पर अलग – अलग संघो और नेताओं के द्वारा भारत के एकीकरण को लेकर बहोत से योजनाओं और समझोतो को देखने को मिलता है।