सैडलर आयोग 1917
वर्ष 1917 में सरकार ने माइकल के नेतृत्व में कलकत्ता विश्वविद्यालय की संभावनाओं के अध्ययन तथा रिपोर्ट के लिए एक आयोग नियुक्त किया. डॉ एम. ई. सैडलर, जो लीडर विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे, इसके अध्यक्ष नियुक्ति किए गए। इस आयोग के सदस्य दो भारतीय, आशुतोष मुखर्जी, डॉo जियाउद्दीन अहमद भी इसके सदस्य थे।
इस आयोग की प्रमुख संस्तुतियां थी :
आयोग को कलकत्ता विश्वविद्यालय की शिक्षा पर रीपोर्ट देने को कहा गया था। इस आयोग का विचार था की यदि विश्वविद्यालय की शिक्षा में सुधार करना है, तो माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में सुधार आवश्यक है।
भारतीय शिक्षा पद्द्ति में भाषा संबंधी विवाद पर अपना विवरण देने के लिए विलियम वैंटिक ने कौंसिल के विधि – सदस्य लॉर्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति का प्रमुख नियुक्त किया।
मैकाले ने भारत में शिक्षा हेतु अंग्रेजी भाषा का समर्थन किया था। भारत के औपनिवेशिक काल में ‘अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत’ ( The theory of downward filtration) शिक्षा के क्षेत्र से संबंधित था।
इस आयोग ने निम्न्लिखित सुझाओं दिए :-
* स्कुली शिक्षा 12 वर्षों की होनी चाहिए।
* इंटरमीडिएट कक्षाएं विश्वविद्यालय से पृथक हों।
* इंदरमीडिएट परीक्षाओं का संचालन माध्यमिक बोर्ड करें।
* कलकत्ता विश्वविद्यालय पर बंगाल सरकार का नियंत्रण हो।
* आयोग ने पास तथा ऑनर्स व साधारण तथा प्रवीण्य पाठ्यकर्म शुरू करने का भी सुझाव दिया गया।
* स्नातक स्तर पर त्रिवर्षीय पाठ्यक्र्म हो, जिसमें इण्टरमीडिएट के बाद स्तानक स्तर की शिक्षा तीन वर्ष की होनी चाहिए।
* प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक कुलपति नियुक्त किया जाये।
* आयोग ने व्यवसायिक कॉलेज खोलने की भी बात कही।
* महिला शिक्षा पर विशेष बल दिया जाए।
* सैडलर आयोग के सुझाओं पर उत्तर प्रदेश में एक ‘ बोर्ड ऑफ़ सेकण्डरी एजुकेशन ‘ स्थापित किया गया तथा मैसूर में 1916, पटना में 1917, बनारसमें 1916, अलीगढ़ में1921, ढाका, लखनऊ, हैदराबाद 1920 में ( उस्मानिया ) में विश्वविद्यालयों को स्थापित किए गए थे शिक्षा को प्रान्तीय विषय बना दिया गया। सभी विश्वविद्यालयों के संचालन वह देख रेख की जिम्मेदारी प्रांतों को दे दी गई।