सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930
सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) महात्मा गांधी द्वारा 1930 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय आंदोलन था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों का विरोध करना और भारतीयों को उनके नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करना था।
क्यों हुआ था यह आंदोलन?
सविनय अवज्ञा आंदोलन का मुख्य कारण था:
- नमक कानून का विरोध: ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को नमक बनाने और उसका इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। गांधीजी ने इस कानून के खिलाफ संघर्ष करने का निर्णय लिया।
- अंग्रेजों की अन्य नीतियों का विरोध: ब्रिटिश शासन के अन्य कई अन्यायपूर्ण कानूनों और नीतियों के खिलाफ गांधीजी ने आंदोलन शुरू किया।
- भारतीयों की राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता की मांग: गांधीजी का उद्देश्य था कि भारतीयों को अपने देश में पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, और ब्रिटिश शासन को समाप्त किया जाना चाहिए।
किया गया क्या?
महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा शुरू की, जहाँ उन्होंने समुद्र तट पर नमक बनाने की प्रक्रिया शुरू की, जो ब्रिटिश कानून का उल्लंघन था। यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया और लाखों लोग इसके साथ जुड़ गए। लोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लगे, नमक बनाने के लिए कानून का उल्लंघन करने लगे और अन्य ब्रिटिश नीतियों का विरोध करने लगे।
प्रभाव और निष्कर्ष:
- ब्रिटिश सरकार पर दबाव: इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को भारत में अपने शासन के खिलाफ बढ़ते हुए विरोध का अहसास कराया। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ा जन आंदोलन बन गया।
- भारतीय जनमानस में जागृति: इस आंदोलन ने भारतीय जनता में स्वतंत्रता संग्राम के प्रति जागरूकता और राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा की।
- गांधी–इरविन समझौता: 1931 में गांधीजी और लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत गांधीजी को जेल से रिहा किया गया और कई राजनीतिक बंदियों को छोड़ा गया। लेकिन यह समझौता अस्थायी था और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जारी रहा।
- ब्रिटिश शासन पर असर: इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नीतियों और सत्ता के खिलाफ भारतीयों की दृढ़ता और संघर्ष को सामने लाया, जिससे भारत में स्वतंत्रता की ओर एक मजबूत कदम बढ़ा।
कुल मिलाकर, सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण भाग था, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन जागृति और विरोध को बढ़ावा दिया।
महत्वपूर्ण समझौते (Important Agreements) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाओं और समझौतों ने भारतीय राजनीति और संघर्ष की दिशा को प्रभावित किया। इनमें से कुछ प्रमुख समझौते निम्नलिखित हैं:
- गांधी–इरविन समझौता (1931):
- परिचय: यह समझौता महात्मा गांधी और ब्रिटिश वायसरॉय लॉर्ड इरविन के बीच हुआ था।
- कारण: सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान भारी विरोध और जन जागृति के बाद, ब्रिटिश सरकार ने बातचीत शुरू की।
- मुख्य शर्तें:
- गांधीजी और अन्य नेताओं को जेल से रिहा किया गया।
- नमक कानून को कुछ हद तक ढीला किया गया।
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलनों को कम करने के लिए शांति का आह्वान किया गया।
- ब्रिटिश सरकार ने कुछ अन्य भारतीय संगठनों को राजनीतिक स्वतंत्रता देने का वादा किया।
- महत्व: यह समझौता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, लेकिन यह अस्थायी था और भारतीयों की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को अधूरा छोड़ गया। Read More
- लाहौर प्रस्ताव (1929):
- परिचय: यह प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में लिया गया था, जिसका अध्यक्ष पंडित नेहरू थे।
- मुख्य शर्तें:
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की मांग की।
- कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से कोई सहयोग न करने का निर्णय लिया और संपूर्ण स्वतंत्रता की दिशा में संघर्ष की घोषणा की।
- महत्व: यह प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने वाला था और इसने भारतीय स्वतंत्रता की पूर्णता की ओर एक निर्णायक कदम बढ़ाया।
- नमक सत्याग्रह (1930):
- परिचय: गांधीजी ने 1930 में ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू किया।
- मुख्य उद्देश्य: नमक बनाने के अधिकार को भारतीयों को वापस दिलाना और ब्रिटिश सरकार के अन्य अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करना।
- महत्व: यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और इसने जन जागृति को उत्पन्न किया। गांधीजी के नेतृत्व में पूरे भारत में इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुटता को बढ़ावा दिया।
- किरेंल–गांधी समझौता (1919):
- परिचय: यह समझौता महात्मा गांधी और ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों के बीच हुआ था।
- मुख्य शर्तें:
- यह समझौता पंजाब में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों को समाप्त करने के लिए किया गया था।
- गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार से भारतीय जनता के लिए कुछ अधिकारों का वादा लिया था।
- समझौते के बाद गांधीजी ने असहमति के बावजूद आंदोलन को स्थगित कर दिया।
- कैम्ब्रिज समझौता (1942):
- परिचय: यह समझौता द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय नेताओं और ब्रिटिश सरकार के बीच हुआ था।
- मुख्य शर्तें:
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने ब्रिटिश सरकार से स्वतंत्रता की वादा लिया था, लेकिन यह वादा जल्दी पूरा नहीं हुआ।
- कैम्ब्रिज समझौते के कारण भारत में स्वतंत्रता संग्राम की गति में और तेज़ी आई।
इन समझौतों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन आंदोलन को मजबूत किया। इनमें से कई समझौतों ने भारतीय जनता की आवाज़ को उठाने और ब्रिटिश शासन की नीतियों को चुनौती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई महान नेताओं ने भाग लिया, जिन्होंने अपने-अपने तरीके से स्वतंत्रता की दिशा में योगदान दिया। हर नेता ने अपने आंदोलनों के दौरान विशेष नारे दिए, जो उस समय के संघर्षों और आंदोलनों के प्रतीक बन गए।
यहां कुछ प्रमुख नेताओं और उनके द्वारा दिए गए नारों की सूची दी जा रही है:
- महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
- नारा:
- “सत्याग्रह करो“ (Do Satyagraha)
- “वन्दे मातरम्“ (Vande Mataram)
- “भारत छोड़ो“ (Quit India)
- महत्व: गांधीजी ने सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को बल दिया। उनके नेतृत्व में भारत ने नमक सत्याग्रह (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे महत्वपूर्ण आंदोलनों का हिस्सा बना।
- भगत सिंह (Bhagat Singh)
- नारा:
- “इंकलाब जिंदाबाद“ (Inquilab Zindabad)
- “सार्वजनिक क्रांति का मार्ग अपनाओ“ (Adopt the path of public revolution)
- महत्व: भगत सिंह ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया, जो भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष का प्रतीक बन गया। वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
- सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose)
- नारा:
- “जय हिंद“ (Jai Hind)
- महत्व: जय हिंद का नारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में दिया गया। यह नारा भारतीय राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना को प्रकट करता है।
- लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai)
- नारा:
- “पंजाब में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का विरोध करो“ (Oppose the repressive policies of the British in Punjab)
- महत्व: लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ पंजाब में बड़े विरोध प्रदर्शन किए और नवजवान भारत सभा की स्थापना की।
- बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak)
- नारा:
- “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है“ (Swaraj is my birthright)
- महत्व: तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी विचारों को फैलाया और भारतीय जनता को स्वराज की आवश्यकता के बारे में जागरूक किया।
- सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel)
- नारा:
- “एकता की शक्ति से ब्रिटिश शासन को हटाओ“ (Remove British rule with the power of unity)
- महत्व: सरदार पटेल ने भारतीय राज्यों के एकीकरण की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया और काँग्रेस के सशक्त नेता के रूप में ब्रिटिश शासन के खिलाफ महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru)
- नारा:
- “जय हिंद“ (Jai Hind)
- महत्व: नेहरू जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए निर्णायक था और वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
- मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav)
- नारा:
- “मुलायम सिंह जिंदाबाद“ (Mulayam Singh Zindabad)
- महत्व: मुलायम सिंह यादव ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अपनी भागीदारी के साथ उत्तर भारत में किसानों और मज़दूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- काँग्रेस के अन्य नेता:
- नारा:
- “भारत माता की जय“ (Bharat Mata Ki Jai)
- महत्व: यह नारा लगभग सभी भारतीय नेताओं ने दिया था। यह नारा भारतीय मातृभूमि के प्रति सम्मान और प्रेम को दर्शाता है। इसे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और स्वतंत्रता के बाद भी देशभक्ति का प्रतीक माना गया।
इन नेताओं और उनके नारों ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित किया। उनके द्वारा दिए गए नारे आज भी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।