Wednesday, October 30, 2024
HomeINDIAN HISTORYBIHARअसहयोग आंदोलन/नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट: कारण, उद्देश्य, घटनाक्रम, महत्व, प्रभाव, परिणाम, नेता

असहयोग आंदोलन/नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट: कारण, उद्देश्य, घटनाक्रम, महत्व, प्रभाव, परिणाम, नेता

नॉनकॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन (1920-1922)

असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक था, जिसका आरंभ महात्मा गांधी ने 1920 में किया था। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण असहयोग और नागरिक अवज्ञा का अभियान था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को कमजोर करना और भारत में स्वराज (स्वतंत्रता) प्राप्त करना था।

असहयोग आंदोलन के कारण
असहयोग आंदोलन का प्रमुख कारण 1919 का जालियाँवाला बाग हत्याकांड और रॉलेट एक्ट था, जिसमें ब्रिटिश सेना ने निर्दोष भारतीयों पर गोलियाँ चलाईं और किसी भी भारतीय को बिना मुकदमे के जेल भेजने का अधिकार सरकार को दिया गया। इन घटनाओं से भारतीय जनता में गुस्सा और असंतोष बढ़ गया था।

आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य
1. ब्रिटिश सरकार से सहयोग समाप्त करना: भारतीयों को ब्रिटिश सरकार के साथ सभी प्रकार के सहयोग समाप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
2. स्वदेशी अपनाना: विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर, स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग बढ़ाना।
3. शैक्षिक और कानूनी संस्थानों का बहिष्कार: सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालयों का बहिष्कार करना।
4. ब्रिटिश उपाधियों का परित्याग: ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई उपाधियों को वापस करना और सरकारी नौकरी छोड़ना।

 असहयोग आंदोलन के प्रमुख घटनाक्रम
– भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1920 में असहयोग आंदोलन को अपना समर्थन दिया।
– लोगों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया।
– सरकारी नौकरियों और सरकारी उपाधियों का परित्याग किया गया।
– किसानों और मजदूरों ने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया।
– आंदोलन का असर पूरे देश में देखा गया, जिसमें हजारों लोग गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गए।

 आंदोलन की समाप्ति
1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने यह आंदोलन अचानक बंद करने का फैसला लिया। चौरी-चौरा में एक हिंसक घटना घटी, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थाने में आग लगा दी और कई पुलिसकर्मी मारे गए। गांधीजी का मानना था कि आंदोलन का उद्देश्य अहिंसा था और इस प्रकार की हिंसात्मक घटनाएं आंदोलन के सिद्धांतों के खिलाफ थीं।

असहयोग आंदोलन का महत्व
असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसने लोगों में एकजुटता और आत्मनिर्भरता का भाव पैदा किया और अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक जन-आंदोलन की नींव रखी।

 असहयोग आंदोलन का प्रभाव
असहयोग आंदोलन ने भारतीय समाज में राजनीतिक जागरूकता और राष्ट्रीयता की भावना को काफी गहराई तक पहुँचाया। इस आंदोलन के कारण कई प्रमुख प्रभाव सामने आए:

  1. भारतीय जनता का राजनीतिकरण: असहयोग आंदोलन में न केवल शिक्षित वर्ग, बल्कि आम किसानों, मजदूरों और छोटे व्यापारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इससे लोगों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत राष्ट्रीय भावना जागृत हुई और वे अपनी स्थिति से ऊपर उठकर स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनने लगे।
  2. महात्मा गांधी का नेतृत्व: इस आंदोलन ने महात्मा गांधी को पूरे भारत में एक अद्वितीय नेता के रूप में स्थापित किया। गांधीजी का अहिंसात्मक सिद्धांत और सत्याग्रह की नीति पूरे भारत में लोकप्रिय हो गई।
  3. स्वदेशी और स्वावलंबन का प्रचार: असहयोग आंदोलन के दौरान स्वदेशी वस्त्रों और उद्योगों का उपयोग बढ़ा। भारतीयों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया और चरखा व खादी का प्रचार-प्रसार हुआ। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम बढ़ाने का मौका मिला।
  4. अहिंसात्मक संघर्ष की नींव: असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा का मार्ग अपनाने की नींव रखी। इस आंदोलन से स्पष्ट हो गया कि भारतीय जनता संगठित होकर शांतिपूर्ण तरीके से भी अंग्रेजों का विरोध कर सकती है।
  5. ब्रिटिश शासन पर प्रभाव: असहयोग आंदोलन से ब्रिटिश सरकार की नीतियों और शासन पर दबाव बढ़ा। अंग्रेजों को महसूस होने लगा कि अगर भारत के लोग ऐसे संगठित और व्यापक विरोध में जुटे रहे तो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए भारत पर राज करना मुश्किल हो जाएगा।

असहयोग आंदोलन की सीमाएं
हालांकि असहयोग आंदोलन ने कई क्षेत्रों में सफलता हासिल की, परंतु इसकी कुछ सीमाएँ भी थीं:

– ग्रामीण और शहरी विभाजन: असहयोग आंदोलन का अधिक प्रभाव शहरों और शिक्षित वर्ग में देखने को मिला, लेकिन इसे ग्रामीण इलाकों में पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया।
– अहिंसा का पालन: चौरी-चौरा की हिंसक घटना ने यह दिखाया कि सभी लोग अहिंसा का पालन करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे। इससे आंदोलन के अनुशासन में कमी दिखाई दी।
– आर्थिक स्थिति: आंदोलन के दौरान गरीब किसानों और मजदूरों पर ब्रिटिश सरकार के अत्याचार जारी रहे, जिससे उनके जीवन पर नकारात्मक असर पड़ा।

असहयोग आंदोलन का ऐतिहासिक महत्व
असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इसने जनता में ब्रिटिश सत्ता के प्रति असंतोष को व्यक्त करने का एक बड़ा मंच दिया। असहयोग आंदोलन भले ही अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल नहीं हुआ हो, लेकिन इसने भारत की स्वतंत्रता के लिए मजबूत नींव रखी।

इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों का रुख बदल दिया और उन्हें आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीयता, और एकजुटता के मार्ग पर आगे बढ़ाया। असहयोग आंदोलन के बाद भारतीय जनता में यह विश्वास उत्पन्न हुआ कि वे ब्रिटिश शासन को अहिंसात्मक तरीके से हरा सकते हैं, जिसने भविष्य के आंदोलनों जैसे नमक सत्याग्रह (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) को प्रेरित किया।

असहयोग आंदोलन के बाद के परिणाम

असहयोग आंदोलन के समाप्त होने के बाद भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर इसके दूरगामी प्रभाव पड़े। आंदोलन ने कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए और भारतीय राजनीति में स्थायी प्रभाव छोड़ा:

  1. आंदोलन का जनाधार: असहयोग आंदोलन के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जनाधार व्यापक हो गया। इसमें पहले जहाँ केवल शिक्षित वर्ग का प्रभुत्व था, अब आम किसान, मजदूर, महिलाएँ और युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया। इसने कांग्रेस को एक जन-आधारित संगठन में बदल दिया, जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम में और मजबूत हुआ।
  2. सामाजिक और धार्मिक एकता: इस आंदोलन ने भारतीयों में जाति, धर्म, और क्षेत्र से ऊपर उठकर एकता की भावना को बढ़ावा दिया। मुसलमानों का भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकता की मिसाल बना, जो खिलाफत आंदोलन के रूप में असहयोग आंदोलन के साथ जुड़ा था।
  3. भविष्य के आंदोलनों की प्रेरणा: असहयोग आंदोलन से प्राप्त अनुभवों और संघर्ष ने महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को भविष्य के आंदोलनों की रणनीति तय करने में मदद की। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को व्यापक जन-आंदोलन का हिस्सा बनाने की समझ विकसित हुई, जिसने आगे चलकर नमक सत्याग्रह (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे बड़े आंदोलनों को जन्म दिया।
  4. महिलाओं की भागीदारी: असहयोग आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने सामाजिक बदलावों को भी प्रेरित किया और उन्हें घरों से बाहर आकर समाज में अपनी भूमिका निभाने का अवसर मिला।
  5. ब्रिटिश शासन की नीतियों में बदलाव: असहयोग आंदोलन के बाद ब्रिटिश शासन को यह स्पष्ट हो गया कि भारतीयों के समर्थन के बिना वे भारत में अपने शासन को बरकरार नहीं रख सकते। इस कारण उन्होंने अपनी नीतियों में कुछ बदलाव लाने की कोशिश की, जैसे कि मोंटेग्यूचेम्सफोर्ड सुधार (Montagu-Chelmsford Reforms) और कुछ हद तक भारतीयों को प्रशासन में शामिल करना।
  6. युवाओं में राष्ट्रवादी चेतना: असहयोग आंदोलन ने भारतीय युवाओं को राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित किया। इसके बाद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, और अन्य क्रांतिकारी नेताओं ने अपने-अपने तरीके से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और इसे नया मोड़ दिया।

असहयोग आंदोलन का आलोचनात्मक मूल्यांकन

हालांकि असहयोग आंदोलन ने व्यापक जनजागरण और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया, फिर भी इसकी सीमाएँ थीं। इस आंदोलन के आलोचकों का मानना था कि:

  • आंदोलन का अचानक समाप्त होना हजारों लोगों के जोश और बलिदान के बावजूद निराशाजनक था, खासकर उन लोगों के लिए जो आंदोलन के चलते जेल गए थे या आर्थिक और सामाजिक नुकसान सहन कर रहे थे।
  • कुछ लोगों का मानना था कि गांधीजी का अहिंसा पर अत्यधिक जोर और आंदोलन को अचानक वापस लेने का निर्णय शायद भारतीयों में साहस और संकल्प की भावना को कुछ हद तक कमजोर कर सकता था।
  • कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इसे पर्याप्त न मानते हुए क्रांतिकारी आंदोलन को आवश्यक माना और अधिक आक्रामक तौर-तरीकों को अपनाया।

निष्कर्ष

असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह पहला ऐसा आंदोलन था जिसमें भारतीय जनता ने व्यापक स्तर पर और संगठित होकर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अहिंसात्मक विरोध जताया। इस आंदोलन ने भारतीय जनता को उनके अधिकारों और स्वाभिमान के प्रति जागरूक किया।

असहयोग आंदोलन से भारत में एक नई राजनीतिक चेतना का जन्म हुआ और इसने स्वराज की अवधारणा को भारतीयों के दिल में बसा दिया। इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को निश्चित रूप से प्रभावित किया और स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर एक मजबूत कदम के रूप में याद किया गया।

मूवमेंट के कुछ मुख्य तत्व थे:

  1. स्वदेशी आंदोलन: इस मूवमेंट में भारतीय वस्त्र, खादी, और अन्य स्वदेशी उत्पादों का प्रचार-प्रसार किया गया और बाहरी वस्तुओं के बहिष्कार का पुनर्निर्माण किया गया।
  2. नॉनकॉऑपरेशन: गांधी ने लोगों से ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग न करने की कड़ी आपत्ति करने के लिए कहा और उन्हें अपनी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए अधिकृत करने की प्रेरणा दी।
  3. हार्टाल और आंदोलन: भारत में विभिन्न क्षेत्रों में हार्टाल, प्रदर्शन और आंदोलन हुए जिसमें लाखों लोग भाग लेते थे।
  4. जलौसी यात्रा: इस मूवमेंट के अंतर्गत “जलौसी यात्रा” की गई, जिसमें भिक्षुकों ने शांतिपूर्ण रूप से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अभियान चलाया।
  5. छावनी बचाओ आंदोलन: 1921 में मालबार में हुए छावनी बचाओ आंदोलन में किसानों ने अपनी भूमि के खिलाफ विरोध प्रकट किया और इसमें नागरिक सत्याग्रह के रूप में शामिल हो गए।

हालांकि, 1922 में चौरी चौरा हत्याकांड के बाद गांधी ने मूवमेंट को विराम देने का निर्णय किया और नॉन-कॉऑपरेशन आंदोलन/ असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया। इसमें हत्याएँ और हिंसा ने मूवमेंट को एक नए रुझान में ले जाने के लिए कहर डाल दिया था।

नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता संग्राम था जो 1920 से 1922 तक चला। यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख पहलुओं में से एक था और महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ। इस मूवमेंट का मुख्य उद्देश्य था भारतीय लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सामंजस्यपूर्ण, शांतिपूर्ण आंदोलन के माध्यम से संजागरूक करना और उन्हें स्वतंत्रता की दिशा में जागरूक करना था।

नॉन-कॉऑपरेशन का अर्थ है “सहयोग न करना” या “को-सहयोग नहीं करना”। गांधी ने इस मूवमेंट के तहत भारतीय लोगों से यह कहा कि वे ब्रिटिश साम्राज्य की स्थिति को स्वीकार नहीं करें, उनके साथ सहयोग न करें, और उनके खिलाफ अमृत महोत्सव तक अपनी सामरिकता बढ़ाएं।

मूवमेंट के दौरान विभिन्न प्रकार के प्रतिवादी कदम उठाए गए, जैसे कि स्वदेशी आंदोलन, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार, असहयोग और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जन आंदोलन जैसे। हार्टाल, जलौसी यात्रा, और अन्य शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का भी आयोजन किया गया।

1922 में चौरी चौरा हत्याकांड के बाद, गांधी ने मूवमेंट को विराम देने का निर्णय किया क्योंकि उन्हें विरोधी आंदोलनों में हिंसा का आधार मिला और उन्होंने यह सोचा कि इससे आंदोलन की असली उद्देश्यों की कमी हो रही है।

नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला और स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।

इस मूवमेंट के कुछ मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  1. नागरिक आंदोलन: नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण नागरिक आंदोलन की भूमिका निभाई। लोगों को सामूहिक रूप से जोड़ने का अवसर मिला और उन्हें स्वतंत्रता के लिए सामूहिक जिम्मेदारी महसूस होने लगी।
  2. स्वदेशी आंदोलन: इस मूवमेंट ने स्वदेशी आंदोलन को मजबूती से बढ़ाया और लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। वस्त्र, खादी, और स्वदेशी उत्पादों का प्रचार-प्रसार किया गया।
  3. जनसंघर्ष की भावना: नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन ने जनसंघर्ष की भावना को बढ़ावा दिया और लोगों में राष्ट्रभक्ति की भावना को उत्तेजना किया।
  4. विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार: लोगों को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की दिशा में प्रेरित किया और इसने ब्रिटिश उत्पादों के खिलाफ एक सामूहिक आंदोलन को बढ़ावा दिया।
  5. हिंसाहीन आंदोलन: इस मूवमेंट का मौखिक नारा था “सत्याग्रही असहयोगी बनो” जिससे स्पष्ट होता है कि गांधी ने हिंसाहीन आंदोलन का पुनर्निर्माण किया।
  6. ब्रिटिश सरकार को चुनौती: नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को एक नए स्तर से चुनौती दी और स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया।
  7. चौरी चौरा हत्याकांड: मूवमेंट के अंत में हुए चौरी चौरा हत्याकांड ने गांधी को आंदोलन को विराम देने के निर्णय पर मजबूर किया, लेकिन इसने भी भारतीय समाज को सहयोग और सामूहिक आंदोलन के महत्वपूर्णता का अहसास कराया।

इन प्रभावों के साथ, नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/ असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नये चरण में ले जाने में मदद की और लोगों में स्वतंत्रता के प्रति उत्साह बढ़ाया।

नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन (1920-1922) में भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

इस आंदोलन में शामिल होने वाले कुछ प्रमुख नेता निम्नलिखित थे:

  1. महात्मा गांधी: नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन के मुख्य नेता और आंदोलन के आचार्य थे। उन्होंने आंदोलन का आयोजन किया और लोगों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अमृत महोत्सव तक स्वतंत्रता के लिए आसन्न करने का आह्वान किया।
  2. जवाहरलाल नेहरु: जवाहरलाल नेहरु ने भी इस मूवमेंट में भाग लिया और गांधीजी के साथ मिलकर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
  3. सरदार वल्लभभाई पटेल: सरदार पटेल ने भी इस मूवमेंट में भाग लिया और उन्होंने अपनी रूढ़िवादी विचारधारा के कारण अंग्रेजों के साथ को-सहयोग नहीं किया।
  4. अबुल कलाम आज़ाद: आज़ाद ने भी गांधीजी के साथ मिलकर इस मूवमेंट में भाग लिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई।
  5. सरोजिनी नायडू: सरोजिनी नायडू ने भी नॉन-कॉऑपरेशन मूवमेंट/असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और महिलाओं को भी आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

ये नेता अपनी भूमिका में विभिन्न क्षेत्रों में आंदोलन को मजबूती और व्यापकता प्रदान करने में सक्रिय रूप से योगदान करते रहे।

 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments