रौलेट एक्ट 1919
भारत में बढ़ रही क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के लिए सरकार ने वर्ष 1917 में न्यायाधीश सिडनी रौलेट की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसका उदेश्य आंतकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था। इसके सुझावों पर मार्च, 1919 में पारित विधेयक रौलेट एक्ट के नाम से जाना गया।
रौलेट अधिनियम के द्वारा अंग्रेजी सरकार जिसको चाहे जब तक चाहे, बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रख सकती थी, इसलिए आंतकी गतिविधियों कुचलने 1917 में सिडनी रौलेट की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।
इस समिति सिफारिशों के आधार पर 1919 में लॉर्ड चेम्सफोर्ड (1916-1921 ) के कार्यकाल में क्रेन्द्रय विधान मण्डल द्वारा एक कानून बनाया गया जो रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है।
इस कानून को ‘ बिना वकील, बिना अपील, बिना दलील का कानून कहा गया। कारण यह था कि सरकार जिसको चाहे, जब तक चाहे जेल बंद रख सकती थी और वह भी बिना मुकदमा चलाए। काला कानून कहकर भारतीयों ने इसका विरोध किया।
गाँधीजी ने रौलेट सत्याग्रह के लिए तीन राजनितिक मंचो का उपयोग किया था – होमरूल लीग, खिलाफत एवं सत्याग्रह सभा था, काला कानून को लेकर 6 अप्रैल, 1919 को गाँधीजी के अनुरोध पर देशभर में हड़ताल का आयोजन हुआ। छोटी – मोटी हिंसा के बिच पंजाब और दिल्ली में गाँधी जी के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया गया।
पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉo सत्यपाल और डॉo सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में ब्रिटिश का दमन करने के लिए 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में शांतिपूर्ण जुलुस निकाली गयी, 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियावाला बाग़ में दोनों नेताओं के गिरफ्तारी के विरोद्ध एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें भारी नरसंहार हुआ और इस दिवश को भारत में काले दिन के नाम से जाना जाता है।